आँख रोवै मन गदकत जाए

बुधवार, 6 जुलाई 2011

खिड़की से सांझ का मौसम बड़ा सुहाना लगा, आसमान में काले बादल छाए, फ़ुहारें बरसा रहे हैं और सूरज पश्चिमायन की ओर गतिमान। अस्ताचल के सूरज के साथ सांझ मायके विदा होती दुल्हन जैसी लगी। एक कहावत याद आई " आँख रोवै मन गदकत जाए, डोला चढ के चमकत जाए।"

6 टिप्पणियाँ:

  1. Rahul Singh ने कहा…:

    जोरदार निकाले हस ग, भारी फभे हे.

  1. Unknown ने कहा…:

    छत्तीसगढ़ी हाना (कहावत) " आँख रोवै मन गदकत जाए, डोला चढ के चमकत जाए" का सुन्दर प्रयोग कर दिया आपने इस पोस्ट में!

  1. केवल राम ने कहा…:

    सांझ के मौसम का हाल जानना आपके प्रकृति प्रेम को दर्शाता है ...!

  1. Kailash Sharma ने कहा…:

    बहुत खूब !

  1. shikha varshney ने कहा…:

    क्या बात है.

  1. ,आँख रोवै मन गदकत जाए, डोला चढ के चमकत जाए।"
    वाह ललित जी क्या बात हैं..सूरज का नजारा .....लगे प्यारा !

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