NH-30 - मेरी सड़क गंगा

मंगलवार, 21 जून 2011
राष्ट्रीय राजमार्ग-43, जिसका नाम बदल कर अब राष्ट्रीय राजमार्ग- 30 हो गया है, यह हमारे गाँव की जीवन रेखा। इसी सड़क से आजादी के पश्चात विकास गाँव में आया। विकास के साथ आवश्यक एवं अनावश्यक बुराईयों ने भी इसी सड़क के माध्यम से गाँव में प्रवेश किया। इसी सड़क से हमने शहर जाकर विद्याध्ययन किया। पता नहीं कितनी शताब्दियों पहले यह बनी है। लेकिन मुझे पता है कि इसका दोहरीकरण सन 1972 में हुआ था, जब इसे राज्य मार्ग से राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया। यह राष्टीय राजमार्ग रायपुर शहर के जयस्तंभ चौक से प्रारंभ होकर विशाखापट्टन तक पहुंचता है। छत्तीसगढ से प्रारंभ होकर उड़ीसा से गुजरता हुआ आन्ध्रप्रदेश को जोड़ता है। यह गंगा सदृश्य जीवन रेखा का काम करता है। वह भी समय था जब दिन भर में दो चार मोटर गाड़ियां ही गुजरती थी, आज सड़क पार करने के लिए जान की बाजी लगानी पड़ती है।

हो सकता है पहले यह "गाड़ा रावन या धरसा" (बैलगाड़ी का रास्ता) हो। जिसके साथ-साथ अंग्रेजों ने रेल लाईन बनाई। 1896 में छत्तीसगढ में अकाल पड़ा, लोगों को रोजगार एवं प्राकृतिक सम्पदा के दोहन के इरादे से अंग्रेजों ने रेल लाईन का निर्माण कराया। जिसकी सेवा सन् 1900 में प्रारंभ हुई। (एक बार जानकारी लेने रेल्वे स्टेशन भी गया था,पर कुछ अधिक जानकारी नहीं मिली) छुक-छुक करता भाप का इंजन जब रायपुर से धमतरी और राजिम की ओर दौड़ा होगा तो लोगों ने कौतुहल भरी निगाहों से देखा होगा। यह रेल जब सुबह शाम घर के पीछे से गुजरती है तो उस रोमांच को महसूस करता हूँ। नैरोगेज की गाड़ी से मैने यात्रा 4-5 बार ही की है। इस रेल से भूतपूर्व रास्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने भी सफ़र किया है। मेरा सड़क गंगा से निरंतर सम्पर्क बना रहा। सन् 1984 से सप्ताह में लगभग 4 बार अभनपुर से रायपुर आना-जाना होता है। इन 26 वर्षों में 27 किलो मीटर मार्ग के मिल के पत्थरों ने भी बतियाना शुरु कर दिया। वे भी अजीज हो गए हैं, दूर से ही पहचान लेते हैं। अगर आंकड़े लगाऊं तो लगभग 1,87,200 किलो मीटर इस मार्ग पर चल लिया हूँ, अहर्निश यात्रा जारी है।


मैं इसे सड़क गंगा ही कहूँगा, क्योंकि गंगा सिर्फ़ एक नदी ही नहीं संस्कृति का नाम भी है। इसी तरह राष्टीय राजमार्ग नम्बर 30 भी एक संस्कृति का ही नाम है। रायपुर से प्रारंभ होकर लगभग 620 किलोमीटर का मार्ग तय कर विशाखापट्टनम पहुंचता है। इसकी यात्रा के दौरान भाषाएं, बोलियाँ, रहन-सहन, खान-पान, मौसम, पर्वों, राज्य, संस्कृति, मकानों में स्पष्ट बदलाव महसूस करेंगे। इस सड़क गंगा के साथ-साथ चलते हुए मैने भी बहुत बदलाव देखे हैं। इसी सड़क गंगा से कभी भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इम्पाला कार में अपने काफ़िले के साथ मेरे गांव में आई थी। बच्चा था इसलिए इम्पाला को नजदीक जाकर अपने हाथों से छू सका। बुलेट मोटर सायकिल में सामने विंड स्क्रीन लगा था और ऐसी कई बुलेट वाले कार के सामने चल रहे थे। मैदान में चारों तरफ़ टीवी ही टीवी लगे थे, लोग मुंह फ़ाड़ कर उसमें इंदिरा गांधी का भाषण सुन रहे थे। ऐसा भी हुआ था।

यह वही सड़क गंगा है जिससे होकर 1952 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद हमारे गांव में आए थे और उन्होने अस्पताल, स्कूल एवं ब्लॉक दफ़्तर का शिलान्यास किया था। अब तो यहां के मैदान में हेलीकाप्टर लैंड करते हैं। सड़क मुंह उठाकर आसमान की तरफ़ देखती है। रोज वी आई पी कहाने वाले लोग उपर ही उपर उड़ते रहते हैं। सड़क पर आम आदमी ही चला करते हैं। जब उड़नखटोला धोखा दे देता है, तभी आसमानी लोग जमीन पर आते हैं। हमने बचपन में देखा है, इस सड़क गंगा के किनारे स्कूली बच्चों को साफ़ सुथरी युनिफ़ार्म पहने लाल बत्ती में आने वाले नेता मंत्री का स्वागत करते हुए, क्योंकि उन बच्चों मे मैं भी शामिल होता था। एक लाल बत्ती सारे प्रशासन में हल-चल मचा देती थी। अफ़सरों की नींद हराम हो जाया करती थी। अब समय के साथ बदलाव आ चुका है, दिन में भी बीसियों लाल बत्ती और पीली बत्ती गुजर जाती हैं, किसी के कान पर जूँ भी नहीं रेंगती। अफ़सर कान खुजाते हुए इन्हे गुजरते हुए देखते हैं।

धीरे-धीरे गाँव कब कस्बे से शहर में बदल गया ,पता ही नहीं चलता। अगर प्रदेश की राजधानी इधर नहीं आती। आज से 10 वर्ष पहले किसी ने भी न सोचा था कि गाँव एक रात में ही शहर में बदल जाएगा। आधी रात को घोषणा हुई कि अभनपुर और मंदिर हसौद ब्लॉक के 26 गावों की जमीन को मिला कर नयी राजधानी बनाई जाएगी। बस उसी दिन से लकदक करती बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ गाँव-गाँव में घुमने लगी। हाथों और गले मोटी-मोटी सोने की चेन पहने एवं दो-दो मोबाईल लिए लोग किसानों की जमीन के सौदे में लग गए। इनकी चमक-धमक से चमके युवा भी जमीन की दलाली में लग गए। किसानों को 10-20 हजार रुपए बयाना के देकर इन्होने करोड़ो कमाए। किसानों की जमीन बिक चुकी है। गांव शहर होने की सारी अहर्ताएं पूरी कर कर रहा है। जिनकी कोठी में धान  भरा रहता था वे अब मजदूरी कर रहे हैं या दारु पीकर नकारा हो रहे हैं। घर-घर में गाड़ियाँ और भौतिक वैभव के सामान जुटा लिए हैं। लेकिन ये कब तक साथ देंगे, खेती तो जीवन पर्यन्त साथ देती थी, पेट भरती थी। सड़क गंगा में बह कर मुद्राराक्षस एवं मगरमच्छ भी गाँव तक पहुंच गए।

बहुत कुछ इस सड़क गंगा ने देखा है और इसके साथ मैने भी। लेकिन मेरे से अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग के मील के पत्थर जानते हैं। वे तटस्थ भाव से सब देखते रहे हैं साक्षी बन कर। राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के मौन साक्षी हैं। मैं भी अब तक मौन ही था, अब मुखर हो रहा हूँ। सब कुछ इतना धीरे-धीरे बदलता है कि समझ ही नहीं आता , बदलाव हो रहा है। "मीर तकीं मीर" का एक स्लो मोशन शेर याद आ गया, "मुख सिती तुम उल्टो नकाब आहिस्ता आहिस्ता, ज्यों गुल से निकसता है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता।" जो देखा है उसे सहेजना चाहता हूँ,जो देख रहा हूँ उसे भी। यह ब्लॉग भी सहेजने की प्रक्रिया का एक उपक्रम ही है। इसके माध्यम से मैं इस सड़क गंगा के साथ-साथ चल कर समय के बदलाव को चित्रों एवं आलेखों के द्वारा सहेजना चाहता हूँ। एक तरह का दस्तावेजीकरण ही मान कर चलिए। अगर ये दस्तावेज भविष्य में किसी के काम आ जाए तो मेरा प्रयास सफ़ल होगा। क्यों ठीक कह रहा हूँ न? आपका स्वागत है।

14 टिप्पणियाँ:

  1. इस नए ब्‍लॉग के साथ आपका स्‍वागत है .. उम्‍मीद है इसके माध्यम से समय के बदलाव को चित्रों एवं आलेखों के द्वारा सहेजने और दस्‍तावेजीकरण करने में आप सफलता प्राप्‍त करेंगे .. शुभकामनाएं !!

  1. Archana Chaoji ने कहा…:

    गंगा, संस्कॄति और मील के पत्थरों से बतियाना...(पत्थर, पत्थरों की भाषा समझते हैं)
    सड़क का आसमान की ओर देखकर यादों के साथ चलना...(दोनो साथ साथ हैं)
    विकास के साथ ही बदलाव को सहेजना...(वर्तमान को संजोना)

    जैसे-दिन भर की मेहनत के बाद नये ब्लॉग का जन्म होना.......अहर्निश यात्रा...

    शुभकामनाएं....

  1. Unknown ने कहा…:

    आपके नये ब्लॉग का स्वागत्!

    यह ब्लॉग निरन्तर प्रगति के पथ पर बढ़ता रहे!

  1. shikha varshney ने कहा…:

    बहुत बहुत स्वागत है आपका नए ब्लॉग के साथ..ढेरों शुभकामनाये.

  1. anurag jagdhari ने कहा…:

    बहुत ही अच्छा लगा.गाँव का दर्द महसूस किया...ख़ुशी तो मुझे कहीं दिखी नहीं

  1. Rahul Singh ने कहा…:

    सराहनीय और स्‍वागतेय प्रयास. 43 के 30 हो जाने की खबर यहीं मिली.

  1. Arvind Mishra ने कहा…:

    अहर्निशं यात्रामये......

  1. Prakash ने कहा…:

    bahut khubsurat kavyatmak aur bhavnatmak varnan.......
    subhkamna....

  1. राजमार्ग के नम्बर के साथ-साथ "गेट-अप" भी बदला।
    शर्मा जी, नया चश्मा, नये कपड़े, नयी मूंछें.......क्या बात है

  1. vandana gupta ने कहा…:

    स्वागत है आपका नए ब्लॉग के साथ..ढेरों शुभकामनाये.

  1. Manoj K ने कहा…:

    आपका प्रयास सराहनीय है ललितजी, वैसे ज़मीन की दलाली और खरीद फरोख्त ने जीवन जीने और रिश्ते नातों को निभाने के रस्मो रिवाजों पर भी असर डाला है और यह असर कुछ खास नज़र नहीं आता. पैसा जिस तरह से आया है अपने साथ बहुत कुछ अनवांछित ही ले आया !!

  1. Udan Tashtari ने कहा…:

    स्वागत इस नये ब्लॉग का एवं अनेक शुभकामनाएँ...


    गंगा सिर्फ़ एक नदी ही नहीं संस्कृति का नाम भी है- बहुत सही बात कही आपने.

  1. kavita verma ने कहा…:

    naye blog ki bahut shubhkamnayen ....aapki blog yatra ganga ki tarah anvarat chalti rahi.....bachpan ki yaden padhna bahut rochak laga...

  1. Ashwini Kesharwani ने कहा…:

    bahut achchhi story hai, aapne bahut hi sundar chitran kiya hai, badhai..lekin 1856 me chhattisgarh me bahut bada akal pada tha.

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