काका जी पुलिया पर बैठ कर पेट अंदर-बाहर कर रहे हैं, लोहार की धूंकनी जैसे धुकाई चल रही थी। बाबा राम देव का चमत्कार है जो उन्होने योगा को योग के वास्तविक स्वरुप में बदल कर गाँव-गाँव तक पहुंचा दिया। काका जी को मैने बताया कि इस पुलिया में बिच्छुओं की खदान है, एक बार बिच्छुओं को भुगत कर देख लिया। अगर ध्यान नहीं रहा तो कपालभाति के साथ-साथ कत्थक भी करना पड़ेगा। बरसात में साँप बिच्छुओं का ध्यान रखना चाहिए।
संस्कृतियों को जोड़ती मेरी "सड़क गंगा"
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7 टिप्पणियाँ:
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मुंहवा भी गहराई की तरफ है। कीड़े ने नाम पूछ लिया तो सचमुच मुसीबत हो जाएगी।
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bahut badiyaa.kapaal bharti ke saath kathak.ha ha ha......
please visit my blog.thanks.
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पेट के अंदर बाहिर करइ होगे लोहा गरम करेके धुंकनी, सांप बिच्छू के आगू मा करे लगथन कत्त्थक| सही केहे, पाइप उइप तिरन के बइठइ बने नोहै, कोनजनि कब दे देही ऊपर जाये के दस्तक………। बने हे चलन दे राजमार्ग 30 के किस्सा………जय जोहार।
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कोई काम नहीं है मुस्किल,जब किया ईरादा पक्का।
मै हूँ आदमी सड़क का,-----मै हूँ आदमी सड़क का
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राष्ट्रीय राजमार्ग 43 अब 30 हुआ
अब राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 पांच राज्यों को जोड़ती है। उत्तराखंड राज्य के सितारंगज के निकट सारा-9 के साथ अपने जंक्शन से प्रारंभ होकर उत्तर प्रदेश में पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ, रायबरेली और इलाहबाद के बाद मध्यप्रदेश में मंगवान, रीवा, कटनी, जबलपुर, मंडला होकर छत्तीसगढ़ में चिपली, सिमगा, रायपुर, धमतरी, कांकेर, केशकाल,जगदलपुर कोंटा से आंध्रप्रदेश के नेल्लीपाक, भद्राचलम, पालोंचा, कोट्टागुडम, तिरावुरु, मेलावरम को जोड़ते हुए कोंडापल्ली के निकट सारा-65 के साथ अपने जंक्शन पर समाप्त होती है।

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- ब्लॉ.ललित शर्मा
- परिचय क्या दूँ मैं तो अपना, नेह भरी जल की बदरी हूँ। किसी पथिक की प्यास बुझाने, कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ। मीत बनाने जग मे आया, मानवता का सजग प्रहरी हूँ। हर द्वार खुला जिसके घर का, सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
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